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उप्र / 25 साल बाद फिर सपा-बसपा आ सकते हैं साथ; अखिलेश और माया बने भाजपा के लिए चुनौती

  • 1993 के विधानसभा चुनाव के समय मुलायम और कांशीराम के बीच हुई थी दोस्ती
  • गेस्ट हाउस कांड ने सपा और बसपा के बीच बढ़ाईं थीं दूरियां
  • अब फिर बदलीं परिस्थिति, लोकसभा चुनाव में गठबंधन करने जा रहे माया और अखिलेश

  • लखनऊ. उत्तरप्रदेश में करीब 25 साल बाद फिर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी एक साथ आ सकते हैं। 1993 में पहली बार विधानसभा चुनाव के समय वक्त मुलायम और कांशीराम के बीच गठबंधन की नींव पड़ी थी। लेकिन, समय और परिस्थितियों ने करवट ली तो साथ छूट गया। अब, ढाई दशक बाद फिर सपा और बसपा एक साथ खड़े होने के लिए तैयार हैं। जमीन भी लगभग तैयार हो चुकी है। बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश के एक साथ आने के संकेत ने प्रदेश में पुरानी तस्वीर दोहराती दिख रही है।

    ढाई दशक पहले भी यही माहौल था

    1. लोकसभा चुनाव की आहट के बीच एक बार फिर सियासत माहौल गर्म है। सभी राजनैतिक दल नए दांव और सियासी गोटें फिट बैठाने के लिए नुकसान-फायदे में माथापच्ची करने में लगे हैं। इधर, देश के सबसे बड़े प्रदेश में फिर इतिहास दोहराने के लिए सबसे बड़े दल सपा और बसपा गठबंधन की जमीन तैयार कर चुके हैं। 25 साल पहले इन दोनों दलों में कांशीराम और मुलायम के बीच जब गठबंधन हुआ था तब भी प्रदेश में हिन्दुत्व की राजनीति गर्म थी। आज भी सियासी माहौल राम मंदिर की राजनीति के इर्द-गिर्द है।
    2. 1993 में सपा-बसपा गठबंधन ने जीती थीं 176 सीट

      मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया था। उसके एक साल बाद बसपा से रणनीतिक तौर पर गठबंधन हुआ था। उस समय बसपा की कमान कांशीराम के पास थी। तत्कालीन जरूरतों को देखते हुए सपा और बसपा के बीच समझौता होना माना गया था। तब, विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा में 256-164 सीटों के फॉर्मूले पर बंटवारे में सहमति बनी थीं। चुनाव बाद सपा ने 109 और बसपा ने 67 सीटों पर जीत हासिल की। दोनों की ये रिश्तेदारी ज्यादा दिन तक नहीं चली। साल 1995 की गर्मियां दोनों दलों के रिश्ते खत्म करने का संदेश लेकर आई। इसमें मुख्य किरदार गेस्ट हाउस कांड था। 2 जून 1995 को हुए गेस्ट हाउस कांड की वजह से बसपा ने सरकार से हाथ खींच लिए और सपा की सरकार अल्पमत में आ गई। भाजपा, मायावती के लिए सहारा बनकर आई और कुछ ही दिनों में तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा को वो चिट्ठी सौंप दी गई कि अगर बसपा सरकार बनाने का दावा पेश करती है तो भाजपा का साथ है।
    3. गेस्ट हाउस कांड के बाद पड़ी रिश्तों में दरार

      2 जून 1995 को उत्तरप्रदेश की राजनीति में जो हुआ, वह भूचाल लाने जैसा था। दरअसल, 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा के बीच गठबंधन हुआ था। इसमें जीत मिलने के बाद मुलायम सिंह यादव को प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन, आपसी मनमुटाव के चलते 2 जून 1995 को बसपा ने समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। नतीजन, मुलायम सरकार अल्पमत में आ गई। सरकार को बचाने के लिए जोड़तोड़ का खेल चल रहा था। बात नहीं बनी। इससे नाराज सपा कार्यकर्ता लखनऊ में मीराबाई मार्ग स्थित गेस्ट हाउस पहुंच गए। वहीं, मायावती कमरा नम्बर एक में ठहरी हुईं थीं। ऐसा बताया जाता है कि इस कमरे में मारपीट और बवाल शुरू हो गया। उस समय भाजपा के विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने कमरे का दरवाजा तोड़कर मायावती को सकुशल बाहर निकाला था। इसके बाद लगातार सपा-बसपा में राजनीतिक हमले होते रहे।
    4. पिछले चुनावों में खिसका जनाधार, दोनों दलों में चिंता

      ढाई दशक की राजनीति में उत्तरप्रदेश में काफी-उतार चढ़ाव देखने को मिले हैं। बसपा प्रमुख मायावती के कई सहयोगियों ने उनका साथ छोड़ दिया है। खासतौर से पिछले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा। इससे मायावती को काफी नुकसान हुआ। इधर, समाजवादी पार्टी की कमान मुलायम के बेटे अखिलेश के हाथ आ गई। 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार आई तो अखिलेश सूबे के मुख्यमंत्री बने। लेकिन, कुछ ही समय में चाचा शिवपाल से ही उनकी अदावत शुरू हो गई। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश और शिवपाल यादव के बीच तल्खी इस कदर बढ़ी कि शिवपाल ने भतीजे की पार्टी से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली। इसका असर भी समाजवादी पार्टी पर पड़ा। अब अखिलेश नए सिरे से पार्टी का जनाधार बढ़ाने में जुटे हुए हैं।
    5. बसपा की बात की जाए तो पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों का प्रदर्शन देखकर कहानी साफ हो जाती है। ''लोकसभा में बसपा का खाता भी नहीं खुला। विधानसभा चुनाव में इतने विधायक भी नहीं जीते कि मायावती राज्यसभा में पहुंच सकें। पार्टी दयनीय स्थिति में पहुंची तो अखिलेश ने एक राज्यसभा की सीट ऑफर कर दोस्ती के लिए हाथ आगे बढ़ा दिया। फिलहाल, बसपा के सामने अस्तित्व बचाने का सवाल है और डूबते को तिनके का सहारा।
    6. 2017 में भाजपा गठबंधन ने जीती 324 सीट्स

      विधानसभा चुनाव 2017 में भाजपा की जबरदस्त वापसी हुई। भाजपा गठबंधन ने प्रदेश में 324 सीटें हासिल की। इनमें से भाजपा ने अकेले 311 सीटें जीती थीं। अपना दल (सोनेलाल) ने 9 सीटें जीती हैं। भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी को 4 सीटें हासिल हुईं। यूपी में भाजपा का यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। कुल 403 सीटों में से 324 पर भाजपा गठबंधन, 54 पर सपा-कांग्रेस गठबंधन, 19 पर बसपा को सफलता मिली थी। जबकि 6 सीटें अन्य के खाते में गईं हैं।
    7. लोकसभा चुनाव में बसपा काे नहीं मिली कोई सीट, सपा ने 5

      लोकसभा चुनाव 2009 में उत्तरप्रदेश में भाजपा 10 सीटों पर सिमट गई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 80 सीटों में से 71 पर जीत हासिल की थी। दूसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी रही जिसे 3 सीटें मिली थी। प्रदेश में बसपा का पत्ता साफ हो गया था। उसे एक भी सीट नहीं मिली। कांग्रेस को सिर्फ रायबरेली और अमेठी से संतोष करना पड़ा। बाद में फूलपुर, गोरखपुर उपचुनाव में सपा ने जीत हासिल की। कैराना में उपचुनाव में अजीत सिंह की लोकदल प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी।
    8. 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी की दलगत स्थिति

      पार्टीलोकसभा सीटें
      भाजपा71
      सपा5
      कांग्रेस2
      अपना दल2
      कुल सीटें80
    9. 2017 के विधानसभा चुनाव में यूपी की दलीय स्थिति

      पार्टीसीट
      भाजपा312
      सपा47
      बसपा19
      अपना दल9
      कांग्रेस7
      निर्दलीय3
      अन्य6