मिशन शक्ति / भारत ने अंतरिक्ष में सैटेलाइट मार गिराने की ताकत हासिल की, ऐसा करने वाला चौथा देश बना: मोदी
- दुनिया ने 2012 में भारत का मजाक उड़ाया था, कहा था- बिना परीक्षण भारत कागजी शेर ही कहलाएगा
- देश के वैज्ञानिकों ने यह चुनौती स्वीकार की, परीक्षण का सबसे मुश्किल रास्ता चुना और 7 साल में उपलब्धि हासिल कर ली
नई दिल्ली. भारत ने अंतरिक्ष में सुरक्षा के लिए एंटी सैटेलाइट मिसाइल तकनीक हासिल कर ली है। यह तकनीक अब तक सिर्फ अमेरिका, रूस और चीन के पास थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा, ‘‘वैज्ञानिकों ने लो अर्थ ऑर्बिट में 300 किलोमीटर दूर एक लाइव सैटेलाइट मार गिराया। यह ऑपरेशन ‘मिशन शक्ति’ भारत की एंटी सैटैलाइट मिसाइल ए-सैट के जरिए सिर्फ तीन मिनट में पूरा किया गया।’’ डीआरडीओ के चेयरमैन जी. सतीश रेड्डी ने भी कहा कि हमने दुनिया को बता दिया है कि हम भी सैटेलाइट्स को कुछ सेंटीमीटर पास जाकर भी गिरा सकते हैं। डिफेंस एक्सपर्ट कर्नल (रिटायर्ड) यूएस राठौड़ ने भास्कर प्लस ऐप से बातचीत में कहा कि जंग की स्थिति में यह मिसाइल टेक्नोलॉजी दुश्मन देश में ब्लैक आउट जैसी स्थिति पैदा कर सकती है। वहीं, डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख डॉ. वीके सारस्वत का कहना है कि अगर विरोधी देशों ने अंतरिक्ष में हथियार तैनात किए, तो भारत उनका मुकाबला करने की स्थिति में होगा।
दुनिया में 69 साल से एंटी सैटेलाइट टेक्नोलॉजी पर काम हो रहा
एंटी सैटेलाइट टेक्नोलॉजी अमेरिका-रूस के बीच के कोल्ड वॉर के दौर से है। यह ऐसा हथियार है, जिन्हें मुख्य रूप से अंतरिक्ष में दुश्मन देशों की सैटेलाइट को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस तरह के हथियार विकसित करने की शुरुआत अमेरिका ने 1950 में की थी। 1960 में रूस (उस वक्त सोवियत यूनियन) ने भी इस पर काम शुरू कर दिया था। कोल्ड वॉर के दौरान अमेरिका और रूस ने इस तरह के हथियार बनाए, लेकिन उत्पादन ज्यादा बड़े पैमाने पर नहीं किया गया। आज अमेरिका का 80% कम्युनिकेशन और नेविगेशन सिस्टम सैटेलाइट पर ही आधारित है और अमेरिका इन्हीं सैटेलाइट की मदद से पूरी दुनिया पर नजर रखता है।
12 साल से भारत की इस तकनीक पर नजर थी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन ने जब 2007 में एंटी सैटेलाइट मिसाइल का परीक्षण शुरू किया, तब तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल दीपक कपूर ने कहा था कि चीन इस दिशा में तेजी से काम कर रहा है और भविष्य में अंतरिक्ष ही हाई मिलिट्री ग्राउंड होगा। इसके बाद 2012 में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के तत्कालीन प्रमुख वीके सारस्वत ने कहा था कि लो अर्थ ऑर्बिट में दुश्मन के उपग्रहों को मार गिराने के मकसद से एंटी सैटेलाइट हथियार बनाने के लिए भारत के पास पूरी तैयारी है।
दुनिया ने भारत को कागजी शेर बताकर मजाक उड़ाया था
जब 2007 और 2012 में भारत ने इस तरह की तैयारियों के संकेत दिए थे तो दुनिया ने हमारा मजाक उड़ाया था। मिलिट्री स्पेस से जुड़े मुद्दों में 12 वर्ष का अनुभव रखने वाली विक्टोरिया सैमसन और स्पेस सेफ्टी मैगजीन के स्कॉलर और आउटर स्पेस एक्सपर्ट माइकल जे. लिसनर भारत की क्षमताओं पर सवाल उठाने वालों में सबसे आगे थे। उन्होंने कहा था कि भारत अगर दुनिया को टेस्ट करके अपनी ताकत नहीं दिखाता है तो वह महज कागजी शेर ही कहलाता रहेगा। उन्होंने कहा था कि भारत अगर सहायक क्षमताएं विकसित कर रहा है तो उसके ये मायने नहीं हैं कि वह एंटी सैटेलाइट तकनीक भी विकसित कर लेगा।
भारत ने मजाक को चुनौती माना, सबसे मुश्किल रास्ता चुना और 7 साल में कामयाबी हासिल कर ली
भारत में पिछले 7 साल से इस तरह की टेक्नोलॉजी पर तेजी से काम हो रहा था। आखिरकार 27 मार्च काे भारत ने एंटी सैटेलाइट मिसाइल की तकनीक हासिल कर ली। भारत के पास इस तरह के परीक्षण के दो तरीके थे। वह या तो फ्लाई-बाय करता यानी लक्ष्य से कुछ दूरी से एंटी सैटेलाइट मिसाइल गुजार सकता था या फिर किसी सैटेलाइट को जाम कर सकता था। दोनों ही तरीके सॉफ्ट स्किल्स कहलाते। लेकिन भारत ने तीसरा और सबसे मुश्किल रास्ता चुना। भारत ने लक्ष्य को नष्ट कर दिया और इस तकनीक पर अपनी 100% क्षमता साबित कर दी। जिस लक्ष्य को साधा गया, वह इसरो का ही माइक्रो सैटेलाइट था, जिसे 24 जनवरी को छोड़ा गया था। आकार में छोटा होने के बावजूद उसे पूरी एक्यूरेसी के साथ मार गिराया गया।
जंग की स्थिति में फायदे में रहेगा भारत
जिस देश के पास यह टेक्नोलॉजी होती है, माना जाता है कि जंग होने की स्थिति में वह अतिरिक्त फायदे में होता है। ऐसी तकनीक दुश्मन के किसी भी सैटेलाइट को जाम कर सकती है या नष्ट कर सकती है। ऐसा करने पर दुश्मन को अपने सैनिकों के मूवमेंट या परमाणु मिसाइलों की पोजिशनिंग करने में परेशानी आ सकती है। भारत के इस तकनीक को हासिल करने के ये मायने हैं कि चीन या पाकिस्तान से जंग होने की स्थिति में सही समय पर इसका इस्तेमाल करने पर यह मिसाइल देश का सबसे बड़ा हथियार होगी। डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख डॉ. सारस्वत ने इस उपलब्धि पर कहा कि भारत की अंतरिक्ष को मिलिट्राइज करने की योजना नहीं है, लेकिन अगर दुनिया या हमारे विरोधी राष्ट्र अंतरिक्ष में हथियारों की तैनाती करते हैं तो भारत के पास उनका मुकाबला करने की आज ताकत है।
लो अर्थ ऑर्बिट क्या है?
लो अर्थ ऑर्बिट यानी पृथ्वी की निचली कक्षा पृथ्वी के सबसे नजदीक ऑर्बिट (कक्षा) है। यह पृथ्वी की सतह से 160 किलोमीटर और 2,000 किलोमीटर के बीच ऊंचाई पर स्थित है। 2022 में भारत की ओर से जो तीन भारतीय अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे, वे भी इस लो अर्थ ऑर्बिट में रहेंगे। इस प्रोजेक्ट पर इसरो ने कहा था कि सिर्फ 16 मिनट में तीन भारतीयों को श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से स्पेस में पहुंचा दिया जाएगा। तीनों भारतीय स्पेस के ‘लो अर्थ ऑर्बिट' में 6 से 7 दिन बिताएंगे।
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